ख़ुशी, उत्सव, मिलन, उत्साह, कृतज्ञता और असीम शांति से भरी एक खूबसूरत और दिव्य अनुभूति है नृत्य। नृत्य ज़ब हम करते हैँ तब हम एनर्जी ब्राह्मण एनर्जी के साथ एक होने लगती है। नृत्य करती शिव कि नटराज प्रतिमा ये दर्शाती है कि विश्व गति से भरा है और यहाँ का कण कण नृत्य कर रहा है। वहीं, शिव का नृत्य ही ब्रह्माण्ड है। इस नृत्य में गति है और इस गति में नृत्य है।
नृत्य कि यही गति ब्राह्मण है। इसी गति को पाना ही प्रभु को पाना है। जिस व्यक्ति ने भगवान को पा लिया है, चाहें चैतन्य हो या मीरा।
वहीं, नृत्य प्रभु कि परम पूजा में लीन होना होता है। नृत्य कोई भी विचार नहीं है, उल्टा तो ये सारे विचारों साथ ही मानसिक विकारों को वर्तमान से बाहर करने का रास्ता है। नृत्य में ज़ब व्यक्ति अपनी सुध बुध खोकर परमात्मा से एक हो जाना चाहता है। ज़ब भी कोई नृत्य होता है तो उसके लिए समय हो या विचार। फिर जितनी भी तरह के दुख होते हैँ वो विलीन हो जाते हैँ।
अभी से ही नहीं बल्कि वैदिक काल से ही नृत्य भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। पुराने समय ही इस ओर लोग इस ओर अत्यधिक ध्यान दिया करते थे।
भारत में शास्त्रीय नृत्य हो, पारम्परिक लोक नृत्य, भंगड़ा, शादी बारात से लेकर ये वास्तव में दिव्यता से एक हो जाने का अहसास कराते हैँ। ऐसे में आप ज़ब भी नृत्य करने का अवसर मिले तब प्रभु को जरूर याद करें, क्युंकि उन्हीं के आशीर्वाद से ये संभव हुआ है कि आप खुश होकर नृत्य कर पा रहे हैँ।
नृत्य करने से पहले हमेशा भगवान को इसलिए भी याद करना चाहिए, ताकि जीवन में आगे भी भगवान इसी तरह का प्रोत्साहन जीवन भर के लिए मिले ओर आप सदैव खुश होकर ऐसे ही झूमते रहें।